Sunday, May 10, 2009

क्या बची रह पायेगी आज़ादी ?

मुझे उक्त परिचर्चा का निमंत्रण तो मै पत्र मिलते ही सोचने लगा किक्या इस कार्य के लिए मुझे अपनीदिनचर्या से आजादी मिल पायेगी | लेकिन धन्यवाद हो आयोजको का , जिन्होंने इस कार्य के लिए मुझे मेरी दिनचर्या से कुछ समय के लिए आजाद होने पर मजबूर कर दिया और में अपने आप से बमुश्किल आजाद हो पाया |मै जब अपने आज से और आज के अपने आप से आजाद हुआ तो मुझे लगा कि हमें इस और चिंतन करने की बहुत जरुरत
है |
सोचता हू, शहीदों ने काटो की राह पर चलकर अपना बलिदान कर हमें शारीरिक रूप से आजाद करा दिया लेकिन क्या हम उनके उस बलिदान की खातिर उनकी याद में अपने गर्त में जा रहे वर्तमान से स्वयं को आजाद कराने के लिए अपने आपसे लड़ने में भी असमर्थ है ? मै भूतकाल में चला जाता हूँ ,स्वयं की पूज्य दादीमाँ के दर्शन करता हूँ जो हमें संसकारो का गुलाम रहने की और मन की चाह से आजाद रहाने की शिक्षा दे रही है लेकिन हमने उनकी उस शिक्षा को पूर्ण रूप से ग्रहण नही किया ,उस पर चिंतन नही किया और धीरे -धीरे दूर होती "शहिदो की आजादी "के मायने बदलकर हम और हमारे बाद हमारी भविष्य की पीदी "शहीदों की आजादी "को भुलाकर आजादी के नए मायने दुन्ढ़कर संस्कारो की गुलामी से आजाद होती चली गई और अब संस्कारो की गुलामी से पुरे तौर पर आजाद हो गई है | क्या बची रहेगी आजादी ? हाँ , बची रह सकती है ,जब हम उन दादीमा को सपनों में लाकर उनकी संस्कारो की शिक्षा को यादकर संस्कारो के गुलाम बनें तथा हमारी भविष्य की पीदी को उन संस्कारों की शिक्षा देकर उन संस्कारों का गुलाम बनाये |यदि यह हो सका तो हम और हमारी पीदी मन की गुलामी {चाह } से आजाद हो जायेगे क्योंकि आज हमारी भोतिक सुखों की चाह ही हमें "शहीदों की आजादी " और "उनके सपनों " से दूर लेती चली जा रही है | जरुर यह कठिन कार्य है लेकिन उतना कठिन नही जितना शहीदों ने किया है क्योंकि हमें इस लडाई में इस बार शहीद नही होना है , हमें सिर्फ़ जी कर आजाद होना है |

1 comment:

  1. Very well said mama.

    Aj agar hume sabse jyada kisi chiz ki zarurat hai to vo hai apne sanskaro ko yaad karneki. Paschimi sanskriti k prabhav me bhulati ja rahi hamari ujjwla va nirmal sanskriti ko hume yaad karna hoga. Wahi hamara aur is duniya ka bachav kar sakti hai.

    Aur iske liye muje lagta hai yadi mata pita aur prathamik kaksha ke hamare shishak prayatna kare to ye bikul bhi kathin nahi hai. Bas ek baar is pidhi k dilo me hamari sanskriti aur itihaas(which should be called history but not 'mythology') ki asmita ko ujagar karde to yaha karya zarur safal ho sakta hai.

    Jai Hind!

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