कविता - दिल की बात , इश्वर की सौगात, अपने हालात
कविता - ख़ुद से मुलाकात , विचारों की एक रातशब्दों की बिसात
कविता - एक सुबह नई, कभी जो सुनी थी है बात वही, ना कुछ ग़लत हर बात सही
कविता - पुरानी बात अनकही, एक मुलाकात अनकही , सुहानी याद अनकही
कविता - अपना विश्वास , बिता मधुमास , हर लम्हा खास
कविता - शुध्ध उपहास , खुला हास (हास्य ), एक आभास
कविता - एक आशा , छुपी निराशा , अपनी भाषा
कविता - कुछ चुप चुप , कुछ गुप चुप , पर सब कुछ
Monday, March 9, 2009
होली
जाने कैसी अब होली है,
ना अब वो टोली है ,
ना अब वो हमजोली है ,
केवल आँख मिचोली है,
संबंधों की खाली झोली है।
ना अब वो साथी संगी है ,
ना अब वो दुनिया सतरंगी है ,
ना अब वो असली बोली है,
अब तो भाषा भादरंगी है।
जाने क्यूँ अब वह सब खोया है ,
हर कोई अन्दर से सोया है ,
ना अब वो दिल का खुलापन ,
अब तो बस तंगी ही तंगी है ।
ना अब वो बच्चे रंग बिरंगे है ,
ना आसमान में पतंगें है ,
अब तो बस दंगे ही दंगे हैं ,
बस सकूँ यही की हम आज भले - चंगे है ।
ना अब वो टोली है ,
ना अब वो हमजोली है ,
केवल आँख मिचोली है,
संबंधों की खाली झोली है।
ना अब वो साथी संगी है ,
ना अब वो दुनिया सतरंगी है ,
ना अब वो असली बोली है,
अब तो भाषा भादरंगी है।
जाने क्यूँ अब वह सब खोया है ,
हर कोई अन्दर से सोया है ,
ना अब वो दिल का खुलापन ,
अब तो बस तंगी ही तंगी है ।
ना अब वो बच्चे रंग बिरंगे है ,
ना आसमान में पतंगें है ,
अब तो बस दंगे ही दंगे हैं ,
बस सकूँ यही की हम आज भले - चंगे है ।
Sunday, March 8, 2009
जाग्रति
क्यों वे खामोश है ?
जिनमे भरा जोश है ,
हर तरफ़ जुल्म है पर उन्हें ना होश है ,
सोचता ही रहता है, जाने किसका दोष है ,
जिन्हें जागते रहना है , वे ही बेहोश है ,
जरुरत है उनकी, लेकिन वे मदहोश हैं ,
हर तरफ़ आतंकी हमला , क्यूँ उनका खून खोलता नही ?
क्यूँ वह अपने आप को तोलता नही ?
जब जरुरत है बोलने की , तो वह बोलता नही ,
उससे हमें उम्मीद है , पर वह मुंह खोलता नही
जब वह जागेगा , तभी आतंकी भागेगा ।
जिनमे भरा जोश है ,
हर तरफ़ जुल्म है पर उन्हें ना होश है ,
सोचता ही रहता है, जाने किसका दोष है ,
जिन्हें जागते रहना है , वे ही बेहोश है ,
जरुरत है उनकी, लेकिन वे मदहोश हैं ,
हर तरफ़ आतंकी हमला , क्यूँ उनका खून खोलता नही ?
क्यूँ वह अपने आप को तोलता नही ?
जब जरुरत है बोलने की , तो वह बोलता नही ,
उससे हमें उम्मीद है , पर वह मुंह खोलता नही
जब वह जागेगा , तभी आतंकी भागेगा ।
Thursday, March 5, 2009
बदलाव
जब था बचपन
तब था सचपन
थी वो गलियां
था वो आँगन ,
ना सूनापन
बस चंचल मन
वो अपनापन
अपना जीवन
ना थी हलचल
ना उथलपुथल
ना कोलाहल
बस अपनी चल ,
पाया वह सब
जब जी गया मचल
अपनी बातें , अपनी रातें ,
अपना सबकुछ , सब थे अपने
अब है यौवन
थोडी अनबन
कुछ सूनापन
कुछ अपनापन
है उथलपुथल ,
अब भटक रहा मन
दिखता मधुबन
सारा जीवन
तब था सचपन
थी वो गलियां
था वो आँगन ,
ना सूनापन
बस चंचल मन
वो अपनापन
अपना जीवन
ना थी हलचल
ना उथलपुथल
ना कोलाहल
बस अपनी चल ,
पाया वह सब
जब जी गया मचल
अपनी बातें , अपनी रातें ,
अपना सबकुछ , सब थे अपने
अब है यौवन
थोडी अनबन
कुछ सूनापन
कुछ अपनापन
है उथलपुथल ,
अब भटक रहा मन
दिखता मधुबन
सारा जीवन
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