जन्मदाता माता -पिता के जीते जी, उनसे वात्सल्य भरे दो शब्द बोलकर ,
उनके दर्शन कर लो ,
इन करुनामूरती के आधे अधर बंद हो जाने पर आखरी समय में,
तैयार गंगा जल की दो बूँद मुह में डालकर क्या कर लोगे ?
हमेशा देने वाले, कभी कुछ अपेक्षा नही रखने वाले,
समय रहते सच्चे मन से, इन जीवित तीर्थों को समझ लो |
"खुश रहना बेटा" ऐसे शब्दों से अंतर्मन से आशीर्वाद देने वाले,
जब इस दुनिया में नही होंगे,तब अश्रुधारा बहा कर क्या कर लोगे ?
पतझड़ में भी बसंत की खुशबू जैसा व्यवहार रखना,
तुम भी अपने बच्चों के माँ-बाप हो, यह ध्यान रखना |
जैसा बोओगे, वैसा काटोगे, यह प्रकृति का नियम है,
माँ-बाप की देह पंचमहाभूत में मिलने के बाद, श्रद्धांजलि दे कर क्या कर लोगे ?
श्रवण बनकर बुढे माँ-बाप की लकडी बनो, यह तो अच्छा है,
लेकिन उन्हें दुःख पहुचाकर, उनकी आखो के अश्रुरूपी मोती मत बनना |
जीते जी सदा सारस के जोड़े की तरह साथ रहने वाले माँ-बाप को मत बाटना,
अपने लोगो का भी उपेक्षित व्यवहार, वे कैसे सहेंगे ?
नौ माह तक पेट में, गोद में तथा बाद अपने ह्रदय में रखकर, तुम्हे बड़ा करने वाले
माँ-बाप को सम्हालने का जब समय आए,तो उन्हें घर का द्वार मत दिखाना,
अभी तुमने उनको रखने की बारी बांधी है,लेकिन कल तुम्हारी बारी आने वाली है, ये याद रखना |
पैसा खर्च करके हर चीज मिल सकती है,लेकिन माँ-बाप कहीं नही मिलेंगे, यह ध्यान रखना|
अडसठ तीर्थ, माँ-बाप के चरणों में ही है यह जान लो,
जीवित रहे तब उनके ह्रदय को शान्ति देना,बाद में ऐसा मौका नही मिलेगा, ऐसा समझना|
माता-पिता की छत्रछाया,तो किन्ही भाग्यशाली पुत्रो को ही मिलती है, ऐसा जानना |
मातरु-देवो भव,पितृ-देवो भव, यह सनातन सत्य है, यह जान लो |
मेरी आपसे एक ही आग्रह भरी विनती है, की जब कभीं आप आपस में मिलो,
मुस्कराते मुख से, इतना ही कहना, माँ-बाबूजी मजे में है |
Sunday, May 17, 2009
Sunday, May 10, 2009
क्या बची रह पायेगी आज़ादी ?
मुझे उक्त परिचर्चा का निमंत्रण तो मै पत्र मिलते ही सोचने लगा किक्या इस कार्य के लिए मुझे अपनीदिनचर्या से आजादी मिल पायेगी | लेकिन धन्यवाद हो आयोजको का , जिन्होंने इस कार्य के लिए मुझे मेरी दिनचर्या से कुछ समय के लिए आजाद होने पर मजबूर कर दिया और में अपने आप से बमुश्किल आजाद हो पाया |मै जब अपने आज से और आज के अपने आप से आजाद हुआ तो मुझे लगा कि हमें इस और चिंतन करने की बहुत जरुरत
है |
सोचता हू, शहीदों ने काटो की राह पर चलकर अपना बलिदान कर हमें शारीरिक रूप से आजाद करा दिया लेकिन क्या हम उनके उस बलिदान की खातिर उनकी याद में अपने गर्त में जा रहे वर्तमान से स्वयं को आजाद कराने के लिए अपने आपसे लड़ने में भी असमर्थ है ? मै भूतकाल में चला जाता हूँ ,स्वयं की पूज्य दादीमाँ के दर्शन करता हूँ जो हमें संसकारो का गुलाम रहने की और मन की चाह से आजाद रहाने की शिक्षा दे रही है लेकिन हमने उनकी उस शिक्षा को पूर्ण रूप से ग्रहण नही किया ,उस पर चिंतन नही किया और धीरे -धीरे दूर होती "शहिदो की आजादी "के मायने बदलकर हम और हमारे बाद हमारी भविष्य की पीदी "शहीदों की आजादी "को भुलाकर आजादी के नए मायने दुन्ढ़कर संस्कारो की गुलामी से आजाद होती चली गई और अब संस्कारो की गुलामी से पुरे तौर पर आजाद हो गई है | क्या बची रहेगी आजादी ? हाँ , बची रह सकती है ,जब हम उन दादीमा को सपनों में लाकर उनकी संस्कारो की शिक्षा को यादकर संस्कारो के गुलाम बनें तथा हमारी भविष्य की पीदी को उन संस्कारों की शिक्षा देकर उन संस्कारों का गुलाम बनाये |यदि यह हो सका तो हम और हमारी पीदी मन की गुलामी {चाह } से आजाद हो जायेगे क्योंकि आज हमारी भोतिक सुखों की चाह ही हमें "शहीदों की आजादी " और "उनके सपनों " से दूर लेती चली जा रही है | जरुर यह कठिन कार्य है लेकिन उतना कठिन नही जितना शहीदों ने किया है क्योंकि हमें इस लडाई में इस बार शहीद नही होना है , हमें सिर्फ़ जी कर आजाद होना है |
है |
सोचता हू, शहीदों ने काटो की राह पर चलकर अपना बलिदान कर हमें शारीरिक रूप से आजाद करा दिया लेकिन क्या हम उनके उस बलिदान की खातिर उनकी याद में अपने गर्त में जा रहे वर्तमान से स्वयं को आजाद कराने के लिए अपने आपसे लड़ने में भी असमर्थ है ? मै भूतकाल में चला जाता हूँ ,स्वयं की पूज्य दादीमाँ के दर्शन करता हूँ जो हमें संसकारो का गुलाम रहने की और मन की चाह से आजाद रहाने की शिक्षा दे रही है लेकिन हमने उनकी उस शिक्षा को पूर्ण रूप से ग्रहण नही किया ,उस पर चिंतन नही किया और धीरे -धीरे दूर होती "शहिदो की आजादी "के मायने बदलकर हम और हमारे बाद हमारी भविष्य की पीदी "शहीदों की आजादी "को भुलाकर आजादी के नए मायने दुन्ढ़कर संस्कारो की गुलामी से आजाद होती चली गई और अब संस्कारो की गुलामी से पुरे तौर पर आजाद हो गई है | क्या बची रहेगी आजादी ? हाँ , बची रह सकती है ,जब हम उन दादीमा को सपनों में लाकर उनकी संस्कारो की शिक्षा को यादकर संस्कारो के गुलाम बनें तथा हमारी भविष्य की पीदी को उन संस्कारों की शिक्षा देकर उन संस्कारों का गुलाम बनाये |यदि यह हो सका तो हम और हमारी पीदी मन की गुलामी {चाह } से आजाद हो जायेगे क्योंकि आज हमारी भोतिक सुखों की चाह ही हमें "शहीदों की आजादी " और "उनके सपनों " से दूर लेती चली जा रही है | जरुर यह कठिन कार्य है लेकिन उतना कठिन नही जितना शहीदों ने किया है क्योंकि हमें इस लडाई में इस बार शहीद नही होना है , हमें सिर्फ़ जी कर आजाद होना है |
Subscribe to:
Posts (Atom)